लघु कथाएं

Wednesday, May 6, 2015

माँ

कामिनी कामायनी
"क्या हुआ ...लडका या लडकी ..."
"लडका... या ...लडकी .. .मुझे क्या पता"
"वाह...तुम्हें ही नहीं पता .. . फिर जन्म किसको दिया।’’
"जन्म... . जन्म तो मैंने एक संतान को दिया... .दुनिया की निगाह में वह लडका या लडकी हो सकता है। मेरे लिए तो मेरे कलेजे का टुकडा मात्र है...मेरा संतान . ..नौ महीने में एक बार भी नहीं सोचा कि क्या लिंग होगा .. .हाँ यह सोच सोच के रोमांचित ज़रूर होती रही कि "मॉ’ कहने वाला आ रहा है।"

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