लघु कथाएं

Monday, May 4, 2015

सफ़ाई पसंद

सआदत हसन मंटो
गाड़ी रुकी हुई थी।

तीन बंदूकची एक डिब्बे के पास आए। 
खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा—“क्यों जनाब, कोई मुर्ग़ा है?”

एक मुसाफ़िर कुछ कहते-कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया—“जी नहीं।”

थोड़ी देर बाद भाले लिए हुए चार लोग आए। 
खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा—“क्यों जनाब, कोई मुर्ग़ा-वुर्ग़ा है?”

उस मुसाफ़िर ने, जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया—“जी मालूम नहीं…आप अंदर आके संडास में देख लीजिए।”

भालेवाले अंदर दाखिल हुए। 
संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्ग़ा निकल आया। 
एक भालेवाले ने कहा—“कर दो हलाल।”

दूसरे ने कहा—“नहीं, यहाँ नहीं…डिब्बा खराब हो जाएगा…बाहर ले चलो।”

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